भारतीय संस्कृति की मान्यता के अनुसार हमारे देश में सदैव दिव्य शक्ति को जागृत किया जाता है। इससे संपूर्ण विश्व में शांति, समृद्धि, मानवीय मूल्यों, धर्म, सत्य, न्याय, सत्कर्म, अच्छाई व सचाई का दीपक जलता रहता है। आज विश्व में हिंसा, अनाचार, अराजकता, अव्यवस्था व अशांति का परिवेश है। ऐसे में देव-आराधना का महत्व द्विगुणित हो जाता है।
तुलसी का प्रतिदिन दर्शन करना पापनाशक समझा जाता है तथा पूजन करना मोक्षदायक। देवपूजा और श्राद्धकर्म में तुलसी आवश्यक है। तुलसी पत्र से पूजा करने से व्रत, यज्ञ, जप, होम, हवन करने का पुण्य प्राप्त होता है। कहते हैं भगवान श्रीकृष्ण को तुलसी अत्यंत प्रिय है।
देवउठनी एकादशी के दिन व्रत करने, भगवत भजन करने एवं संध्या के समय ईख (गन्ने) का मंडप बनाकर मध्य में चौकी पर भगवान विष्णु को प्रतिष्ठित करने एवं दीप प्रज्वलित करके गंध, अक्षत, पुष्प, नैवेद्य आदि के साथ पूजन कार्य श्रद्धापूर्वक करना चाहिए।
मान्यता है कि भगवान विष्णु चार माह के शयनोपरांत इस दिन क्षीरसागर में जागे थे। इसीलिए उनके शयनकाल में मांगलिक कार्य संपन्न नहीं किए जाते हैं। हरि-जागरण के उपरांत ही शुभ-मांगलिक कार्य प्रारंभ होते हैं।
व्रती महिलाएं इस दिन प्रातःकाल स्नान आदि से निवृत्त होकर आंगन में चौक पूरकर भगवान विष्णु के चरणों को कलात्मक रूप से अंकित करती हैं। तेज धूप में विष्णुजी के चरणों को ढंक दिया जाता है। रात्रि को विधिवत पूजन के बाद प्रातःकाल भगवान को शंख, घंटा, घड़ियाल आदि बजाकर जगाया जाता है। इसके बाद पूजा कर कहानी सुनाई जाती है।
वस्तुतः देवोत्थान एकादशी को दीप पर्व का समापन दिवस भी माना जाता है। इसीलिए इस दिन लक्ष्मी का पुण्य स्मरण करना भी विस्मृत नहीं करना चाहिए।
भो दीप! त्वं ब्रह्मरूप अंधकार निवारक।
इमां मया कृतां पूजां ग्रह्यंस्तेजयः प्रर्वधाय॥
ॐ दीपेभ्योनमः॥
शुभंभवतु कल्याण्मारोग्यं पुष्टिवर्द्धनम्।
आत्मतत्व प्रबोधाय दीपज्योर्तिनमोऽस्तुते॥
इस प्रकार मां लक्ष्मी का स्मरण करने से घर में सुख-सुमृद्धि, धन वर्षा, आरोग्य तथा सभी सुखों की प्राप्ति होती है।
तुलसी का प्रतिदिन दर्शन करना पापनाशक समझा जाता है तथा पूजन करना मोक्षदायक। देवपूजा और श्राद्धकर्म में तुलसी आवश्यक है। तुलसी पत्र से पूजा करने से व्रत, यज्ञ, जप, होम, हवन करने का पुण्य प्राप्त होता है। कहते हैं भगवान श्रीकृष्ण को तुलसी अत्यंत प्रिय है।
देवउठनी एकादशी के दिन व्रत करने, भगवत भजन करने एवं संध्या के समय ईख (गन्ने) का मंडप बनाकर मध्य में चौकी पर भगवान विष्णु को प्रतिष्ठित करने एवं दीप प्रज्वलित करके गंध, अक्षत, पुष्प, नैवेद्य आदि के साथ पूजन कार्य श्रद्धापूर्वक करना चाहिए।
व्रती महिलाएं इस दिन प्रातःकाल स्नान आदि से निवृत्त होकर आंगन में चौक पूरकर भगवान विष्णु के चरणों को कलात्मक रूप से अंकित करती हैं। तेज धूप में विष्णुजी के चरणों को ढंक दिया जाता है। रात्रि को विधिवत पूजन के बाद प्रातःकाल भगवान को शंख, घंटा, घड़ियाल आदि बजाकर जगाया जाता है। इसके बाद पूजा कर कहानी सुनाई जाती है।
वस्तुतः देवोत्थान एकादशी को दीप पर्व का समापन दिवस भी माना जाता है। इसीलिए इस दिन लक्ष्मी का पुण्य स्मरण करना भी विस्मृत नहीं करना चाहिए।
भो दीप! त्वं ब्रह्मरूप अंधकार निवारक।
इमां मया कृतां पूजां ग्रह्यंस्तेजयः प्रर्वधाय॥
ॐ दीपेभ्योनमः॥
शुभंभवतु कल्याण्मारोग्यं पुष्टिवर्द्धनम्।
आत्मतत्व प्रबोधाय दीपज्योर्तिनमोऽस्तुते॥
इस प्रकार मां लक्ष्मी का स्मरण करने से घर में सुख-सुमृद्धि, धन वर्षा, आरोग्य तथा सभी सुखों की प्राप्ति होती है।
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