Wednesday, 4 November 2015

दिवाली लेख पांच पर्वों का प्रतीक है दिवाली



त्योहार या उत्सव हमारे सुख और हर्षोल्लास के प्रतीक है जो परिस्थिति के अनुसार अपने रंग-रुप और आकार में भिन्न होते हैं। त्योहार मनाने के विधि-विधान भी भिन्न हो सकते है किंतु इनका अभिप्राय आनंद प्राप्ति या किसी विशिष्ट आस्था का संरक्षण होता है। सभी त्योहारों से कोई न कोई पौराणिक कथा अवश्य जुड़ी हुई है और इन कथाओं का संबंध तर्क से न होकर अधिकतर आस्था से होता है। यह भी कहा जा सकता है कि पौराणिक कथाएं प्रतीकात्मक होती हैं।
कार्तिक मास की अमावस्या के दिन दिवाली का त्योहार मनाया जाता है। दिवाली को दीपावली भी कहा जाता है। दिवाली एक त्योहार भर न होकर, त्योहारों की एक श्रृंखला है। इस पर्व के साथ पांच पर्वों जुड़े हुए हैं। सभी पर्वों के साथ दंत-कथाएं जुड़ी हुई हैं। दिवाली का त्योहार दिवाली से दो दिन पूर्व आरम्भ होकर दो दिन पश्चात समाप्त होता है।
दिवाली का शुभारंभ कार्तिक मास की कृष्ण पक्ष त्रयोदशी के दिन से होता है। इसे धनतेरस कहा जाता है। इस दिन आरोग्य के देवता धन्वंतरि की आराधना की जाती है। इस दिन नए-नए बर्तन, आभूषण इत्यादि खरीदने का रिवाज है। इस दिन घी के दिये जलाकर देवी लक्ष्मी का आहवान किया जाता है।
दूसरे दिन चतुर्दशी को नरक-चौदस मनाया जाता है। इसे छोटी दिवाली भी कहा जाता है। इस दिन एक पुराने दीपक में सरसों का तेल व पाँच अन्न के दाने डाल कर इसे घर की नाली ओर जलाकर रखा जाता है। यह दीपक यम दीपक कहलाता है।
एक अन्य दंत-कथा के अनुसार भगवान श्रीकृष्ण ने इसी दिन नरकासुर राक्षस का वध कर उसके कारागार से 16,000 कन्याओं को मुक्त कराया था।
तीसरे दिन अमावस्या को दिवाली का त्योहार पूरे भारतवर्ष के अतिरिक्त विश्वभर में बसे भारतीय हर्षोल्लास के साथ मनाते हैं। इस दिन देवी लक्ष्मी व गणेश की पूजा की जाती है। यह भिन्न-भिन्न स्थानों पर विभिन्न तरीकों से मनाया जाता है।
दिवाली के पश्चात अन्नकूट मनाया जाता है। यह दिवाली की श्रृंखला में चौथा उत्सव होता है। लोग इस दिन विभिन्न प्रकार के व्यंजन बनाकर गोवर्धन की पूजा करते हैं। 
शुक्ल द्वितीया को भाई-दूज या भैयादूज का त्योहार मनाया जाता है। मान्यता है कि यदि इस दिन भाई और बहन यमुना में स्नान करें तो यमराज निकट नहीं फटकता।

दिवाली भरत में बसे कई समुदायों में भिन्न कारणों से प्रचलित है। दीपक जलाने की प्रथा के पीछे अलग-अलग कारण या कहानियाँ हैं।
राम भक्तों के अनुसार दिवाली वाले दिन अयोध्या के राजा राम लंका के अत्याचारी राजा रावण का वध कर के अयोध्या लौटे थे। उनके लौटने कि खुशी यह पर्व मनाया जाने लगा।
कृष्ण भक्तों की मान्यता है कि इस दिन भगवान श्री कृण्ण ने अत्याचारी राजा नरकासुर का वध किया था।  इस नृशंस राक्षस के वध से जनता में अपार हर्ष फैल गया और लोगों ने प्रसन्नतापूर्वक घी के दीये जलाए।
एक पौराणिक कथा के अनुसार विंष्णु ने नरसिंह रुप धारणकर हिरण्यकश्यप का वध किया था तथा इसी दिन समुद्रमंथन के पश्चात देवी लक्ष्मी व भगवान धन्वंतरि प्रकट हुए।
जैन मतावलंबियों के अनुसार चौबीसवें तीर्थंकर महावीर स्वामी का निर्वाण दिवस भी दीपावली को ही हुआ था।
बौद्ध धर्म के प्रवर्तक गौतम बुद्ध के अनुयायियों ने 2500 वर्ष पूर्व गौतम बुद्ध के स्वागत में लाखों दीप जला कर दीपावली मनाई थी। दीपावली मनाने के कारण कुछ भी रहे हों परंतु यह निश्चित है कि यह वस्तुत: दीपोत्सव है।
सिक्खों के लिए भी दिवाली महत्वपूर्ण है क्योंकि इसी दिन अमृतसर में स्वर्ण मन्दिर का शिलान्यास हुआ था और दिवाली ही के दिन सिक्खों के छ्टे गुरु हरगोबिन्द सिंह जी को कारागार से रिहा किया गया था।
नेपालियों के लिए यह त्योहार इसलिए महान है क्योंकि इस दिन से नेपाल संवत में नया वर्ष आरम्भ होता है।

दीप पर्व का समापन दिवस देवउठनी एकादशी से शुभ-मांगलिक कार्य प्रारंभ

भारतीय संस्कृति की मान्यता के अनुसार हमारे देश में सदैव दिव्य शक्ति को जागृत किया जाता है। इससे संपूर्ण विश्व में शांति, समृद्धि, मानवीय मूल्यों, धर्म, सत्य, न्याय, सत्कर्म, अच्छाई व सचाई का दीपक जलता रहता है। आज विश्व में हिंसा, अनाचार, अराजकता, अव्यवस्था व अशांति का परिवेश है। ऐसे में देव-आराधना का महत्व द्विगुणित हो जाता है। 

तुलसी का प्रतिदिन दर्शन करना पापनाशक समझा जाता है तथा पूजन करना मोक्षदायक। देवपूजा और श्राद्धकर्म में तुलसी आवश्यक है। तुलसी पत्र से पूजा करने से व्रत, यज्ञ, जप, होम, हवन करने का पुण्य प्राप्त होता है। कहते हैं भगवान श्रीकृष्ण को तुलसी अत्यंत प्रिय है। 

देवउठनी एकादशी के दिन व्रत करने, भगवत भजन करने एवं संध्या के समय ईख (गन्ने) का मंडप बनाकर मध्य में चौकी पर भगवान विष्णु को प्रतिष्ठित करने एवं दीप प्रज्वलित करके गंध, अक्षत, पुष्प, नैवेद्य आदि के साथ पूजन कार्य श्रद्धापूर्वक करना चाहिए। 



मान्यता है कि भगवान विष्णु चार माह के शयनोपरांत इस दिन क्षीरसागर में जागे थे। इसीलिए उनके शयनकाल में मांगलिक कार्य संपन्न नहीं किए जाते हैं। हरि-जागरण के उपरांत ही शुभ-मांगलिक कार्य प्रारंभ होते हैं। 

व्रती महिलाएं इस दिन प्रातःकाल स्नान आदि से निवृत्त होकर आंगन में चौक पूरकर भगवान विष्णु के चरणों को कलात्मक रूप से अंकित करती हैं। तेज धूप में विष्णुजी के चरणों को ढंक दिया जाता है। रात्रि को विधिवत पूजन के बाद प्रातःकाल भगवान को शंख, घंटा, घड़ियाल आदि बजाकर जगाया जाता है। इसके बाद पूजा कर कहानी सुनाई जाती है। 

वस्तुतः देवोत्थान एकादशी को दीप पर्व का समापन दिवस भी माना जाता है। इसीलिए इस दिन लक्ष्मी का पुण्य स्मरण करना भी विस्मृत नहीं करना चाहिए। 

भो दीप! त्वं ब्रह्मरूप अंधकार निवारक।
इमां मया कृतां पूजां ग्रह्यंस्तेजयः प्रर्वधाय॥
ॐ दीपेभ्योनमः॥
शुभंभवतु कल्याण्मारोग्यं पुष्टिवर्द्धनम्‌।
आत्मतत्व प्रबोधाय दीपज्योर्तिनमोऽस्तुते॥ 

इस प्रकार मां लक्ष्मी का स्मरण करने से घर में सुख-सुमृद्धि, धन वर्षा, आरोग्य तथा सभी सुखों की प्राप्ति होती है।

Tuesday, 20 October 2015

धनतेरस पूजा विधि - रामकुमार शर्मा Dhanteras  

धनतेरस पूजा विधि (Dhanteras  )
धनतेरस का त्यौहार कार्तिक कृष्ण त्रयोदशी को मनाया जाता है। इस दिन लोग भगवान धन्वन्तरि की पूजा करते हैं और यमराज के लिए दीप देते हैं। धनतेरस को धनत्रयोदशी भी कहा जाता है। धनतेरस का पर्व आयुर्वेद के देवता के जन्मदिन के रूप में भी मनाया जाता है।
धनतेरस 2015 (Dhanteras 2015)
 

साल 2015 में धनतेरस का त्यौहार 09 नवंबर को मनाया जाएगा। इस दिन पूजा शुभ मुहूर्त शाम 05:50 मिनट से लेकर रात्रि 07:06 मिनट तक का है।
धनतेरस पूजा विधि (Dhanteras Puja Vidhi in Hindi)
 
स्कंदपुराण के अनुसार कार्तिक कृष्ण त्रयोदशी को प्रदोषकाल में घर के दरवाजे पर यमराज के लिए दीप देने से अकाल मृत्यु का भय खत्म होता है। इस दिन पूरे विधि- विधान से देवी लक्ष्मी और धन के देवता कुबेर की पूजा करने का विधान है। माना जाता है कि इस दिन प्रदोषकाल में लक्ष्मी जी की पूजा करने से वह घर में ही ठहर जाती हैं।
धनतेरस मंत्र (Dhanteras Mantra Hindi)
दीपदान के समय इस मंत्र का जाप करते रहना चाहिए:

मृत्युना पाशदण्डाभ्यां कालेन च मया सह।
त्रयोदश्यां दीपदानात सूर्यज: प्रीयतामिति॥
इस मंत्र का अर्थ है:
त्रयोदशी को दीपदान करने से मृत्यु, पाश, दण्ड, काल और लक्ष्मी के साथ सूर्यनन्दन यम प्रसन्न हों। इस मंत्र के द्वारा लक्ष्मी जी भी प्रसन्न होती हैं।

धनतेरस के दिन खरीदारी (Shopping on Dhanteras)  
कई लोग इस दिन लक्ष्मी जी और कुबेर जी की भी पूजा करते हैं। मान्यता है कि इस दिन लक्ष्मी-कुबेर जी की पूजा करने से मनुष्य को कभी धन वैभव की कमी नहीं होती। इस दिन खरीदारी करना शुभ माना जाता है। इस दिन विशेषकर बर्तनों और गहनों आदि की खरीदारी की जाती है।
प्रदोषकाल (Dhanteras Muhurat)
इस दिन प्रदोषकाल के समय दीपदान देना शुभ माना जाता है। दीपदान का शुभ मुहूर्त शाम 5 बजकर 41 मिनट से लेकर रात्रि 8 बजकर 15 मिनट तक है।  इस दिन कुबेर भगवान और लक्ष्मी जी की पूजा का शुभ मुहूर्त शाम 7 बजकर 04 मिनट से लेकर रात्रि 8 बजकर 15 मिनट तक है।
धनतेरस के विषय में अधिक जानकारी के लिए क्लिक करें:
धनतेरस की कथा (Dhanteras Katha in Hindi)
लक्ष्मी जी के मंत्र पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें:
लक्ष्मी जी के मंत्र (Laxmi Mantra in Hindi)
धनतेरस (Dhanteras)
हिन्दू समाज में धनतेरस सुख-समृद्धि, यश और वैभव का पर्व माना जाता है। इस दिन धन के देवता कुबेर और आयुर्वेद के देव धन्वंतरि की पूजा का बड़ा महत्त्व है। हिन्दू पंचांग के अनुसार कार्तिक मास की त्रयोदशी तिथि को मनाए जाने वाले इस महापर्व के बारे में स्कन्द पुराण में लिखा है कि इसी दिन देवताओं के वैद्य धन्वंतरि अमृत कलश सहित सागर मंथन से प्रकट हुए थे, जिस कारण इस दिन धनतेरस के साथ-साथ धन्वंतरि जयंती भी मनाई जाती है। साल 2015 में धनतेरस का त्यौहार 9 नवंबर को मनाया जाएगा।
धनतेरस के दिन खरीददारी (Shoping on Dhanteras in Hindi)
नई चीजों के शुभ आगमन के इस पर्व में मुख्य रूप से नए बर्तन या सोना-चांदी खरीदने की परंपरा है। आस्थावान भक्तों के अनुसार चूंकि जन्म के समय धन्वंतरि जी के हाथों में अमृत का कलश था, इसलिए इस दिन बर्तन खरीदना अति शुभ होता है। विशेषकर पीतल के बर्तन खरीदना बेहद शुभ माना जाता है। 

 
धनतेरस कथा (Dhanteras Katha in Hindi)
कहा जाता है कि इसी दिन यमराज से राजा हिम के पुत्र की रक्षा उसकी पत्नी ने किया था, जिस कारण दीपावली से दो दिन पहले मनाए जाने वाले ऐश्वर्य का त्यौहार धनतेरस पर सायंकाल को यम देव के निमित्त दीपदान किया जाता है। इस दिन को यमदीप दान भी कहा जाता है। मान्यता है कि ऐसा करने से यमराज के कोप से सुरक्षा मिलती है और पूरा परिवार स्वस्थ रहता है। इस दिन घरों को साफ-सफाई, लीप-पोत कर स्वच्छ और पवित्र बनाया जाता है और फिर शाम के समय रंगोली बना दीपक जलाकर धन और वैभव की देवी मां लक्ष्मी का आवाहन किया जाता है।
इसे भी पढ़ें-
धनतेरस की पूजा विधि जानने के लिए यहां क्लिक करेंधनतेरस की पूजा विधि (Dhanteras Puja Vidhi)
धनतेरस पूजा विधि (Dhanteras  )
धनतेरस का त्यौहार कार्तिक कृष्ण त्रयोदशी को मनाया जाता है। इस दिन लोग भगवान धन्वन्तरि की पूजा करते हैं और यमराज के लिए दीप देते हैं। धनतेरस को धनत्रयोदशी भी कहा जाता है। धनतेरस का पर्व आयुर्वेद के देवता के जन्मदिन के रूप में भी मनाया जाता है।
धनतेरस 2015 (Dhanteras 2015)
 

साल 2015 में धनतेरस का त्यौहार 09 नवंबर को मनाया जाएगा। इस दिन पूजा शुभ मुहूर्त शाम 05:50 मिनट से लेकर रात्रि 07:06 मिनट तक का है।
धनतेरस पूजा विधि (Dhanteras Puja Vidhi in Hindi)
 
स्कंदपुराण के अनुसार कार्तिक कृष्ण त्रयोदशी को प्रदोषकाल में घर के दरवाजे पर यमराज के लिए दीप देने से अकाल मृत्यु का भय खत्म होता है। इस दिन पूरे विधि- विधान से देवी लक्ष्मी और धन के देवता कुबेर की पूजा करने का विधान है। माना जाता है कि इस दिन प्रदोषकाल में लक्ष्मी जी की पूजा करने से वह घर में ही ठहर जाती हैं।
धनतेरस मंत्र (Dhanteras Mantra Hindi)
दीपदान के समय इस मंत्र का जाप करते रहना चाहिए:

मृत्युना पाशदण्डाभ्यां कालेन च मया सह।
त्रयोदश्यां दीपदानात सूर्यज: प्रीयतामिति॥
इस मंत्र का अर्थ है:
त्रयोदशी को दीपदान करने से मृत्यु, पाश, दण्ड, काल और लक्ष्मी के साथ सूर्यनन्दन यम प्रसन्न हों। इस मंत्र के द्वारा लक्ष्मी जी भी प्रसन्न होती हैं।

धनतेरस के दिन खरीदारी (Shopping on Dhanteras)  
कई लोग इस दिन लक्ष्मी जी और कुबेर जी की भी पूजा करते हैं। मान्यता है कि इस दिन लक्ष्मी-कुबेर जी की पूजा करने से मनुष्य को कभी धन वैभव की कमी नहीं होती। इस दिन खरीदारी करना शुभ माना जाता है। इस दिन विशेषकर बर्तनों और गहनों आदि की खरीदारी की जाती है।
प्रदोषकाल (Dhanteras Muhurat)
इस दिन प्रदोषकाल के समय दीपदान देना शुभ माना जाता है। दीपदान का शुभ मुहूर्त शाम 5 बजकर 41 मिनट से लेकर रात्रि 8 बजकर 15 मिनट तक है।  इस दिन कुबेर भगवान और लक्ष्मी जी की पूजा का शुभ मुहूर्त शाम 7 बजकर 04 मिनट से लेकर रात्रि 8 बजकर 15 मिनट तक है।
धनतेरस के विषय में अधिक जानकारी के लिए क्लिक करें:
धनतेरस की कथा (Dhanteras Katha in Hindi)
लक्ष्मी जी के मंत्र पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें:
लक्ष्मी जी के मंत्र (Laxmi Mantra in Hindi)

धनतेरस पूजन में रखें इनका खास ध्यान

धनतेरस पूजन में रखें इनका खास ध्यान

धनतेरस और यम दीपदान का महत्व
धनतेरस पूजन
FILE

प्रचलित कथा के अनुसार कार्तिक कृष्ण त्रयोदशी के दिन समुद्र मंथन से आयुर्वेद के जनक भगवान धन्वंतरी‍ लेकर प्रकट हुए थे। उन्होंने देवताओं को अमृतपान कराकर अमर कर दिया था। 

अतः वर्तमान संदर्भ में भी आयु और स्वास्थ्य की कामना से पर भगवान धन्वंतरी‍ का पूजन किया जाता है। इस दिन वैदिक देवता यमराज का पूजन भी किया जाता है। 

कई श्रद्धालु इस दिन उपवास रहकर यमराज की कथा का श्रवण भी करते हैं। आज से ही तीन दिन तक चलने वाला गो-त्रिरात्र व्रत भी शुरू होता है। 
* इस दिन धन्वंतरी‍ जी का पूजन करें। 

* नवीन झाडू एवं सूपड़ा खरीदकर उनका पूजन करें।

* सायंकाल दीपक प्रज्वलित कर घर, दुकान आदि को श्रृंगारित करें।

* मंदिर, गौशाला, नदी के घाट, कुओं, तालाब, बगीचों में भी दीपक लगाएं।

* यथाशक्ति तांबे, पीतल, चांदी के गृह-उपयोगी नवीन बर्तन व आभूषण क्रय करते हैं।

* हल जुती मिट्टी को दूध में भिगोकर उसमें सेमर की शाखा डालकर तीन बार अपने शरीर पर फेरें।

* कार्तिक स्नान करके प्रदोष काल में घाट, गौशाला, बावड़ी, कुआं, मंदिर आदि स्थानों पर तीन दिन तक दीपक जलाएं। 


धनतेरस पूजन में क्या करें

(अ) कुबेर पूज
शुभ मुहूर्त में अपने व्यावसायिक प्रतिष्ठान में नई गादी बिछाएं अथवा पुरानी गादी को ही साफ कर पुनः स्थापित करें।
पश्चात नवीन बसना बिछाएं।

सायंकाल पश्चात तेरह दीपक प्रज्वलित कर तिजोरी में कुबेर का पूजन करते हैं।

कुबेर का ध्यान

निम्न ध्यान मंत्र बोलकर भगवान कुबेर पर फूल चढ़ाएं -

श्रेष्ठ विमान पर विराजमान, गरुड़मणि के समान आभावाले, दोनों हाथों में गदा एवं वर धारण करने वाले, सिर पर श्रेष्ठ मुकुट से अलंकृत तुंदिल शरीर वाले, भगवान शिव के प्रिय मित्र निधीश्वर कुबेर का मैं ध्यान करता हूं।

इसके पश्चात निम्न मंत्र द्वारा चंदन, धूप, दीप, नैवेद्य से पूजन करें -

'यक्षाय कुबेराय वैश्रवणाय धन-धान्य अधिपतये 
धन-धान्य समृद्धि मे देहि दापय स्वाहा।' 

इसके पश्चात कपूर से आरती उतारकर मंत्र पुष्पांजलि अर्पित करें।

(ब) यम दीपदान

* तेरस के सायंकाल किसी पात्र में तिल के तेल से युक्त दीपक प्रज्वलित करें।

* पश्चात गंध, पुष्प, अक्षत से पूजन कर दक्षिण दिशा की ओर मुंह करके यम से निम्न प्रार्थना करें-

'मृत्युना दंडपाशाभ्याम्‌ कालेन श्यामया सह। 
त्रयोदश्यां दीपदानात्‌ सूर्यजः प्रयतां मम। 

अब उन दीपकों से यम की प्रसन्नता के लिए सार्वजनिक स्थलों को प्रकाशित करें।

इसी प्रकार एक अखंड दीपक घर के प्रमुख द्वार की देहरी पर किसी प्रकार का अन्न (साबूत गेहूं या चावल आदि) बिछाकर उस पर रखें। (मान्यता है कि इस प्रकार दीपदान करने से यम देवता के पाश और नरक से मुक्ति मिलती है।)

यमराज पूजन

* इस दिन यम के लिए आटे का दीपक बनाकर घर के मुख्य द्वार पर रखें।

* रात को घर की स्त्रियां दीपक में तेल डालकर चार बत्तियां जलाएं।

* जल, रोली, चावल, गुड़, फूल, नैवेद्य आदि सहित दीपक जलाकर यम का पूजन करें।

धनतेरस पूजा मुहूर्त


प्रदोष काल मुहूर्त


धनतेरस पूजा मुहूर्त = १७:५० से १९:०६
अवधि = १ घण्टा १५ मिनट्स
प्रदोष काल = १७:२६ से २०:०६
वृषभ काल = १७:५० से १९:४६
त्रयोदशी तिथि प्रारम्भ = ८/नवम्बर/२०१५ को १६:३१ बजे
त्रयोदशी तिथि समाप्त = ९/नवम्बर/२०१५ को १९:०६ बजे
टिप्पणी - २४ घण्टे की घड़ी नई दिल्ली के स्थानीय समय के साथ और सभी मुहूर्त के समय के लिए डी.एस.टी समायोजित (यदि मान्य है)।
२०१५ धनतेरस पूजा, धनत्रयोदशी पूजा

धनत्रयोदशी या धनतेरस के दौरान लक्ष्मी पूजा को प्रदोष काल के दौरान किया जाना चाहिए जो कि सूर्यास्त के बाद प्रारम्भ होता है और लगभग २ घण्टे २४ मिनट तक रहता है।

धनतेरस पूजा को करने के लिए हम चौघड़िया मुहूर्त को देखने की सलाह नहीं देते हैं क्योंकि वे मुहूर्त यात्रा के लिए उपयुक्त होते हैं। धनतेरस पूजा के लिए सबसे उपयुक्त समय प्रदोष काल के दौरान होता है जब स्थिर लग्न प्रचलित होती है। ऐसा माना जाता है कि अगर स्थिर लग्न के दौरान धनतेरस पूजा की जाये तो लक्ष्मीजी घर में ठहर जाती है। इसीलिए धनतेरस पूजन के लिए यह समय सबसे उपयुक्त होता है। वृषभ लग्न को स्थिर माना गया है और दीवाली के त्यौहार के दौरान यह अधिकतर प्रदोष काल के साथ अधिव्याप्त होता है।

धनतेरस पूजा के लिए हम यथार्थ समय उपलब्ध कराते हैं। हमारे दर्शाये गए मुहूर्त के समय में त्रयोदशी तिथि, प्रदोष काल और स्थिर लग्न सम्मिलित होते हैं। हम स्थान के अनुसार मुहूर्त उपलब्ध कराते हैं इसीलिए आपको धनतेरस पूजा का शुभ समय देखने से पहले अपने शहर का चयन कर लेना चाहिए।

धनतेरस पूजा को धनत्रयोदशी के नाम से भी जाना जाता है। धनतेरस का दिन धन्वन्तरि त्रयोदशी या धन्वन्तरि जयन्ती, जो कि आयुर्वेद के देवता का जन्म दिवस है, के रूप में भी मनाया जाता है।

इसी दिन परिवार के किसी भी सदस्य की असामयिक मृत्यु से बचने के लिए मृत्यु के देवता यमराज के लिए घर के बाहर दीपक जलाया जाता है जिसे यम दीपम के नाम से जाना जाता है और इस धार्मिक संस्कार को त्रयोदशी तिथि के दिन किया जाता है।

द्रिक पञ्चाङ्ग के सभी सदस्यों की ओर से आपको धनत्रयोदशी की हार्दिक शुभकामनायें।

रामवीर मौर्य

धनतेरस पूजा

9वाँ
नवम्बर २०१५
(सोमवार)
महालक्ष्मी कुबेर पूजन
धनतेरस पर महालक्ष्मी कुबेर पूजा- विधि